प्रेगनेंसी के दौरान कुछ महत्वपूर्ण टेस्ट होते हैं जो माँ और शिशु के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए जरूरी हैं। अल्ट्रासाउंड स्कैन गर्भस्थ शिशु के विकास और स्थिति को जानने के लिए आवश्यक है। ब्लड टेस्ट से एनीमिया, थायरॉइड, और शुगर जैसी स्थितियों का पता लगाया जाता है। यूरिन टेस्ट प्रोटीन और संक्रमण की जांच के लिए किया जाता है। डबल और ट्रिपल मार्कर टेस्ट शिशु में किसी क्रोमोसोमल विकार (जैसे डाउन सिंड्रोम) का पता लगाने में सहायक है। इसके अलावा, ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (GTT) और ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग माँ के स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं। इन परीक्षणों से माँ और शिशु दोनों का सुरक्षित और स्वस्थ गर्भकाल सुनिश्चित होता है।

अल्ट्रासाउंड और ब्लड प्रेशर चेकअप

अल्ट्रासाउंड:
अल्ट्रासाउंड एक चिकित्सा तकनीक है जो ध्वनि तरंगों का उपयोग करके शरीर के आंतरिक अंगों और संरचनाओं की तस्वीरें बनाने के लिए की जाती है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित और रेडिएशन-फ्री होती है। इसका उपयोग गर्भावस्था के दौरान शिशु की स्थिति और विकास को देखने, अंगों की संरचना का मूल्यांकन करने और स्वास्थ्य समस्याओं के निदान के लिए किया जाता है। अल्ट्रासाउंड के विभिन्न प्रकारों में पेट, पेल्विक, डॉपलर, थ्री-डी और इकोकार्डियोग्राफी शामिल हैं।

ब्लड प्रेशर चेकअप:
ब्लड प्रेशर चेकअप एक सामान्य चिकित्सा प्रक्रिया है, जो यह मापने के लिए की जाती है कि हृदय किस दबाव से रक्त पंप कर रहा है। इसमें दो माप शामिल होते हैं: सिस्टोलिक (ऊपरी) और डायस्टोलिक (निचला) दबाव। यह चेकअप उच्च रक्तचाप (हाई बीपी) और निम्न रक्तचाप (लो बीपी) का पता लगाने के लिए किया जाता है। नियमित रूप से ब्लड प्रेशर मापना हृदय रोग, स्ट्रोक और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है।

आरएच फैक्टर और प्लेटलेट्स की जांच

आरएच फैक्टर की जांच:
आरएच फैक्टर एक प्रोटीन है जो रेड ब्लड सेल्स की सतह पर पाया जाता है। यह खून के प्रकार को "+" (पॉजिटिव) या "-" (नेगेटिव) में वर्गीकृत करता है। गर्भावस्था के दौरान आरएच फैक्टर की जांच करना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि यदि माँ का आरएच फैक्टर नेगेटिव है और शिशु का पॉजिटिव, तो यह आरएच असंगति (आरएच इनकॉम्पैटिबिलिटी) पैदा कर सकता है। इससे माँ के शरीर में एंटीबॉडी बनने लगती हैं, जो शिशु के रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसे रोकने के लिए डॉक्टर आरएच नेगेटिव महिलाओं को Rh-इम्यूनोग्लोबुलिन (RhIg) इंजेक्शन देते हैं। यह जाँच पहली गर्भावस्था के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

प्लेटलेट्स की जांच:
प्लेटलेट्स खून में मौजूद छोटे कण हैं, जो खून के जमने और चोट से रक्तस्राव रोकने में मदद करते हैं। गर्भावस्था में प्लेटलेट्स की जांच (प्लेटलेट काउंट) करना जरूरी होता है, क्योंकि प्लेटलेट्स की कमी (थ्रोम्बोसाइटोपेनिया) माँ और शिशु दोनों के लिए जोखिम भरा हो सकता है। यह समस्या प्रीक्लेम्पसिया, हेल्प सिंड्रोम, या अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत हो सकती है। नियमित प्लेटलेट्स जांच से समय रहते उपचार शुरू किया जा सकता है, जिससे गंभीर जटिलताओं को टाला जा सके। यह दोनों जांचें गर्भावस्था में माँ और शिशु के स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

थायराइड और डायबिटीज स्क्रीनिंग

थायराइड स्क्रीनिंग:
गर्भावस्था के दौरान थायराइड का संतुलित होना माँ और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। थायराइड स्क्रीनिंग टीएसएच (TSH), टी3 (T3), और टी4 (T4) हार्मोन के स्तर की जांच करती है। यदि थायराइड हार्मोन अधिक होता है (हाइपरथायरायडिज्म) या कम होता है (हाइपोथायरायडिज्म), तो यह गर्भपात, प्रीटर्म लेबर, या शिशु के मस्तिष्क विकास में बाधा पैदा कर सकता है। सही समय पर जांच और उपचार से इन जटिलताओं को रोका जा सकता है।

डायबिटीज स्क्रीनिंग:
डायबिटीज स्क्रीनिंग, विशेष रूप से ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (GTT), गर्भावस्था में अत्यधिक शुगर स्तर (गेस्टेशनल डायबिटीज) का पता लगाने के लिए की जाती है। यह स्क्रीनिंग दूसरी तिमाही में अधिकतर की जाती है। गेस्टेशनल डायबिटीज होने पर माँ को उच्च रक्तचाप, प्रीटर्म डिलीवरी, और शिशु के वजन बढ़ने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। समय पर स्क्रीनिंग और डाइट, व्यायाम, या दवाओं से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यह दोनों स्क्रीनिंग माँ और शिशु के स्वस्थ गर्भकाल के लिए अनिवार्य हैं।

पहले ट्राइमेस्टर के टेस्ट्स


गर्भावस्था का पहला ट्राइमेस्टर (0-12 सप्ताह) माँ और शिशु के स्वास्थ्य की नींव रखता है। इस दौरान कुछ महत्वपूर्ण परीक्षण किए जाते हैं, जो गर्भावस्था की स्थिति और शिशु के विकास का पता लगाने में मदद करते हैं।

  1. ब्लड टेस्ट: यह टेस्ट खून की ग्रुपिंग, हीमोग्लोबिन स्तर, आरएच फैक्टर, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, सिफलिस, और थायराइड हार्मोन की जांच के लिए किया जाता है। इससे माँ के शरीर में खून की कमी, संक्रमण, या हार्मोनल असंतुलन का पता चलता है।

  2. यूरिन टेस्ट: इस टेस्ट से संक्रमण, प्रोटीन या शुगर की मात्रा की जांच की जाती है। यह किडनी और ब्लड शुगर की स्थिति समझने के लिए आवश्यक है।

  3. अल्ट्रासाउंड: पहले ट्राइमेस्टर में अल्ट्रासाउंड भ्रूण की सही स्थिति, दिल की धड़कन, और उम्र का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। यह गर्भधारण की सही सप्ताह की पुष्टि करता है।

  4. डबल मार्कर टेस्ट: यह शिशु में किसी आनुवंशिक विकार (जैसे डाउन सिंड्रोम) का पता लगाने के लिए किया जाता है।

  5. ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (GTT): शुगर लेवल की जांच के लिए यह टेस्ट उन महिलाओं में किया जाता है, जिन्हें डायबिटीज का जोखिम हो।

ये टेस्ट माँ और शिशु दोनों के स्वास्थ्य की निगरानी और किसी भी जटिलता को समय रहते पहचानने में मदद करते हैं।

प्रेगनेंसी में सावधानियाँ

गर्भावस्था हर महिला के जीवन का एक खास समय होता है, जिसमें माँ और शिशु दोनों के स्वास्थ्य की देखभाल बहुत महत्वपूर्ण होती है। स्वस्थ गर्भावस्था के लिए कुछ महत्वपूर्ण सावधानियाँ अपनाना आवश्यक है।

  1. संतुलित आहार: गर्भावस्था के दौरान पोषण से भरपूर आहार लेना बहुत जरूरी है। आहार में फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, प्रोटीन, और कैल्शियम युक्त भोजन शामिल करें। कैफीन, जंक फूड, और अत्यधिक तला-भुना खाने से बचें।

  2. हाइड्रेशन: दिनभर में पर्याप्त मात्रा में पानी पिएँ, जिससे शरीर में पानी की कमी न हो।

  3. व्यायाम और शारीरिक गतिविधियाँ: हल्के व्यायाम जैसे योग और वॉकिंग सेहतमंद गर्भावस्था में मदद करते हैं, लेकिन भारी व्यायाम और अधिक मेहनत वाले कार्यों से बचें।

  4. दवाइयाँ और सप्लीमेंट्स: डॉक्टर द्वारा सुझाए गए फोलिक एसिड, आयरन, और कैल्शियम सप्लीमेंट्स लें। बिना डॉक्टर की सलाह के कोई दवा न लें।

  5. तनाव और आराम: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नींद और आराम करें। तनाव से बचने के लिए मेडिटेशन या गहरी साँस लेने की तकनीक अपनाएँ।

  6. धूम्रपान और शराब से परहेज: गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान और शराब पूरी तरह से बंद कर दें, क्योंकि यह शिशु के विकास पर बुरा प्रभाव डाल सकता है।

  7. नियमित चेकअप: डॉक्टर से नियमित रूप से परामर्श लें और जरूरी टेस्ट कराएँ।

इन सावधानियों को अपनाकर आप अपनी गर्भावस्था को स्वस्थ और सुरक्षित बना सकती हैं।

ब्लड और यूरिन टेस्ट्स

ब्लड टेस्ट्स:
गर्भावस्था के दौरान ब्लड टेस्ट्स बेहद जरूरी होते हैं, क्योंकि ये माँ और शिशु दोनों के स्वास्थ्य का आकलन करने में मदद करते हैं। ब्लड टेस्ट से खून की ग्रुपिंग और आरएच फैक्टर की पहचान होती है, जो गर्भावस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हीमोग्लोबिन लेवल जांचकर एनीमिया का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, सिफलिस और थायराइड हार्मोन की जांच भी की जाती है। डबल और ट्रिपल मार्कर टेस्ट्स शिशु में आनुवंशिक विकारों का पता लगाने में सहायक होते हैं।

यूरिन टेस्ट्स:
यूरिन टेस्ट्स गर्भावस्था के दौरान किडनी की सेहत और संक्रमण की पहचान के लिए किए जाते हैं। इसमें प्रोटीन, शुगर, और बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता लगाया जाता है। प्रोटीन का स्तर उच्च होने से प्रीक्लेम्पसिया का संकेत मिल सकता है, जबकि शुगर का स्तर गेस्टेशनल डायबिटीज का संकेत देता है। नियमित यूरिन टेस्ट से संक्रमण या अन्य जटिलताओं का समय पर पता लगाकर इलाज किया जा सकता है।

इन टेस्ट्स से गर्भावस्था के दौरान किसी भी जटिलता का समय रहते पता चल जाता है, जिससे माँ और शिशु का स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।

विटामिन और मिनरल्स की जांच

गर्भावस्था के दौरान माँ और शिशु के स्वस्थ विकास के लिए शरीर में विटामिन और मिनरल्स का सही स्तर होना बेहद जरूरी है। विटामिन और मिनरल्स की जांच (न्यूट्रिशनल स्क्रीनिंग) के माध्यम से शरीर में पोषक तत्वों की कमी का पता लगाया जाता है और समय पर उसका उपचार किया जा सकता है।

  1. विटामिन डी: यह जांच हड्डियों और शिशु के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इसकी कमी से माँ में हड्डियों की कमजोरी और शिशु में रिकेट्स का खतरा हो सकता है।

  2. आयरन: आयरन की कमी से एनीमिया हो सकता है, जो माँ को थकान और कमजोरी का अनुभव कराता है और शिशु के विकास को प्रभावित कर सकता है।

  3. कैल्शियम: यह शिशु की हड्डियों, दांतों और मांसपेशियों के विकास के लिए आवश्यक है। इसकी कमी माँ में हड्डियों की समस्याओं को बढ़ा सकती है।

  4. विटामिन बी12 और फोलिक एसिड: ये शिशु के मस्तिष्क और न्यूरल ट्यूब के विकास के लिए जरूरी हैं। इनकी कमी से न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट हो सकता है।

  5. मैग्नीशियम और जिंक: ये खनिज गर्भावस्था में मांसपेशियों की ऐंठन और समय से पहले प्रसव के जोखिम को कम करते हैं।

इन जांचों से शरीर में पोषक तत्वों की स्थिति का पता चलने पर डॉक्टर द्वारा सही डाइट और सप्लीमेंट्स सुझाए जा सकते हैं, जिससे माँ और शिशु दोनों का स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है।

हेपेटाइटिस बी और अन्य संक्रमण की जांच

गर्भावस्था के दौरान माँ और शिशु के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए संक्रमणों की समय पर जांच बेहद जरूरी है। हेपेटाइटिस बी संक्रमण की जांच गर्भावस्था के शुरुआती चरण में की जाती है। यह एक वायरल संक्रमण है जो खून और शरीर के तरल पदार्थों के माध्यम से फैलता है। हेपेटाइटिस बी पॉजिटिव होने पर वायरस माँ से शिशु में प्रसव के दौरान स्थानांतरित हो सकता है, जिससे शिशु को लिवर संक्रमण का खतरा हो सकता है। इस स्थिति में, शिशु को जन्म के तुरंत बाद हेपेटाइटिस बी वैक्सीन और इम्यूनोग्लोबुलिन इंजेक्शन देकर सुरक्षित किया जाता है।

  • अन्य संक्रमण की जांच में एचआईवी, सिफलिस, रुबेला (जर्मन खसरा), टॉक्सोप्लास्मोसिस, और साइटोमेगालोवायरस (CMV) शामिल हैं।
  • एचआईवी टेस्ट: यह संक्रमण माँ से शिशु में स्थानांतरित हो सकता है। समय पर निदान से एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी द्वारा इस जोखिम को कम किया जा सकता है।
  • सिफलिस टेस्ट: यह एक यौन संचारित रोग है, जो शिशु में जन्मजात विकार का कारण बन सकता है।
  • रुबेला एंटीबॉडी टेस्ट: रूबेला संक्रमण से शिशु में जन्मजात दोष हो सकते हैं।
  • टॉक्सोप्लास्मोसिस: यह एक परजीवी संक्रमण है, जो अधपके मांस या संक्रमित पानी के माध्यम से फैलता है।
  • CMV टेस्ट: यह सामान्य वायरस गर्भावस्था के दौरान गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है।
  • इन संक्रमणों की समय पर जांच और उपचार से माँ और शिशु के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जा सकता है।

Dr. Sunita Singh Rathore

Dr. Sunita Singh Rathore

Dr. Sunita Singh Rathore is a highly experienced fertility specialist with over 15 years of expertise in assisted reproductive techniques. She has helped numerous couples achieve their dream of parenthood with a compassionate and patient-centric approach.