प्रसव के बाद मासिक धर्म (Postpartum Period): पूरी जानकारी और सेल्फ-केयर

प्रसव के बाद पीरियड कब आता है?

प्रसव के बाद मासिक धर्म लौटने का समय हर महिला के शरीर और जीवनशैली पर निर्भर करता है। यह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि आप ब्रेस्टफीडिंग कर रही हैं या नहीं।

  • ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं में पहला पीरियड 6 महीने से 1 साल तक नहीं आता क्योंकि शरीर में प्रोलैक्टिन हार्मोन अधिक मात्रा में बनता है, जो ओव्यूलेशन को दबा देता है।

  • अगर ब्रेस्टफीडिंग नहीं कर रही हैं, तो पहला पीरियड डिलीवरी के 6 से 8 हफ्तों के भीतर आ सकता है।

  • कुछ महिलाओं में पीरियड अनियमित हो सकते हैं या शुरुआती महीनों में हल्के-तेज फ्लो में बदलाव हो सकता है।

प्रसव के बाद पहले पीरियड की पहचान कैसे करें?

  • ब्लीडिंग अधिक या हल्की हो सकती है।

  • पहले कुछ महीनों तक अनियमित पीरियड हो सकते हैं।

  • क्रैम्प्स ज्यादा महसूस हो सकते हैं।

  • ब्लड का रंग गहरा लाल, भूरा या काला भी हो सकता है।

  • ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पीरियड्स आने पर दूध की मात्रा में हल्की कमी हो सकती है, लेकिन यह सामान्य है।

प्रसव के बाद कितने दिन तक पीरियड रहता है?

  • पहला पीरियड 4 से 7 दिन तक रह सकता है।

  • शुरुआती महीनों में पीरियड हल्का या भारी हो सकता है।

  • धीरे-धीरे हार्मोन बैलेंस होते हैं और पीरियड नियमित हो जाता है।

प्रसव के बाद पीरियड के दौरान सेल्फ-केयर टिप्स

1. हाइजीन बनाए रखें

  • हर 4-6 घंटे में पैड बदलें।

  • मेंस्ट्रुअल कप का उपयोग करना चाहें तो डॉक्टर से सलाह लें।

  • हल्के गुनगुने पानी से सफाई करें और खुशबूदार प्रोडक्ट्स से बचें।

2. अच्छा पोषण लें

  • आयरन से भरपूर भोजन करें (पालक, चुकंदर, अनार, गुड़)।

  • प्रोटीन युक्त आहार लें (दूध, दालें, अंडा, पनीर)।

  • भरपूर पानी पिएं ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे।

  • कैफीन और जंक फूड से बचें, इससे ब्लोटिंग और थकान हो सकती है।

3. शरीर को आराम दें

  • पर्याप्त नींद लें क्योंकि शरीर रिकवरी कर रहा होता है।

  • हल्की वॉक या योगा करें ताकि ब्लड सर्कुलेशन बेहतर हो।

  • बहुत भारी काम करने से बचें।

4. मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें

  • हार्मोनल बदलाव के कारण मूड स्विंग्स हो सकते हैं, इसलिए ध्यान (मेडिटेशन) और डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज करें।

  • अपनों से बात करें, अगर आप उदासी या एंग्जायटी महसूस कर रही हैं।

  • अगर ज्यादा डिप्रेशन महसूस हो तो डॉक्टर से सलाह लें।

डॉक्टर से कब सलाह लें?

  • पीरियड बहुत ज्यादा भारी हो (हर 1-2 घंटे में पैड बदलना पड़ रहा हो)।

  • बहुत ज्यादा पेट दर्द या ऐंठन हो।

  • पीरियड कई महीनों तक नहीं आए और आप ब्रेस्टफीडिंग नहीं कर रही हैं।

  • ब्लीडिंग के साथ गर्भाशय में संक्रमण या बदबूदार डिस्चार्ज हो।

डॉक्टर से मिलने की जरूरत कब है?

  1. अगर प्रसव के 1 साल बाद भी पीरियड्स नहीं आए, या अगर आप ब्रेस्टफीडिंग नहीं करा रही हैं और फिर भी 6 महीने से ज्यादा समय तक पीरियड नहीं आया, तो डॉक्टर से सलाह लें।
  2. बहुत ज्यादा बाल झड़ रहे हों और शरीर में कमजोरी महसूस हो।
  3. गर्भाशय में दर्द हो रहा हो लेकिन पीरियड न आ रहे हों।
  4. ब्लोटिंग, पेट में सूजन या अचानक वजन बढ़ना
  5. ब्रेस्टफीडिंग बंद करने के 3-6 महीने बाद भी पीरियड न आए।
  6. अगर पहले पीरियड के बाद बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो रही हो।

अगर पीरियड न आ रहे हों तो क्या करें?

1. हार्मोनल बैलेंस के लिए पोषण सही करें

आयरन और प्रोटीन युक्त आहार – हरी सब्जियां, चुकंदर, अनार, गुड़, बादाम, और दालें खाएं।
दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स – शरीर को कैल्शियम और विटामिन D की जरूरत होती है।
ओमेगा-3 फैटी एसिड – अखरोट, अलसी और मछली खाएं, जिससे हार्मोनल संतुलन बना रहता है।
जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड से बचें – यह हार्मोनल असंतुलन को बढ़ा सकता है।

2. हल्की एक्सरसाइज करें

हल्की वॉक और योगा करने से ब्लड सर्कुलेशन सही रहता है और हार्मोन बैलेंस होता है।
तनाव कम करने के लिए मेडिटेशन और डीप ब्रीदिंग करें।
पेल्विक स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करने से गर्भाशय को सामान्य स्थिति में आने में मदद मिलती है।

3. वजन को बैलेंस करें

बहुत ज्यादा वजन बढ़ने या अचानक वजन घटने से पीरियड्स प्रभावित होते हैं।
संतुलित आहार और नियमित शारीरिक गतिविधियां अपनाएं।

4. पर्याप्त आराम और नींद लें

रात में 7-8 घंटे की नींद लें।
रिलैक्सिंग हर्बल टी या हल्का गर्म दूध पीकर सोने जाएं।

5. प्राकृतिक तरीके अपनाएं

गर्म पानी में अदरक या दालचीनी डालकर पीने से हार्मोन बैलेंस होता है।
अश्वगंधा और शतावरी जड़ी-बूटी का सेवन करने से पीरियड्स जल्दी आ सकते हैं (डॉक्टर की सलाह लेकर लें)।

प्रसव के बाद ब्लीडिंग कितने दिन तक रहती है?

  • पहले 1-2 हफ्ते: लाल रंग की भारी ब्लीडिंग होती है।

  • 3-4 हफ्ते तक: ब्लीडिंग हल्की होकर गुलाबी या भूरी हो सकती है।

  • 4-6 हफ्ते के बाद: आमतौर पर ब्लीडिंग बंद हो जाती है।

  • अगर 6 हफ्ते से ज्यादा समय तक लगातार ब्लीडिंग हो रही है, तो यह चिंता का विषय हो सकता है।

अगर 2 महीने तक ब्लीडिंग हो,तो यह है संभावित कारण

डिलीवरी के बाद कुछ हफ्तों तक ब्लीडिंग (जिसे लोचिया कहा जाता है) सामान्य होती है, लेकिन अगर 2 महीने तक लगातार ब्लीडिंग हो रही हो, तो यह एक गंभीर संकेत हो सकता है। इस स्थिति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और समय पर डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।

1. गर्भाशय का पूरी तरह साफ न होना (Retained Placental Tissue)

  • डिलीवरी के बाद गर्भाशय में आंशिक प्लेसेंटा या टिशू रह सकते हैं, जिससे लगातार ब्लीडिंग होती है।

  • इसमें बदबूदार डिस्चार्ज, पेट में दर्द और हल्का बुखार भी हो सकता है।

2. इंफेक्शन (Postpartum Infection - Endometritis)

  • अगर ब्लीडिंग के साथ बुखार, बदबूदार डिस्चार्ज और तेज पेट दर्द हो रहा है, तो यह संक्रमण हो सकता है।

  • यह आमतौर पर सिजेरियन डिलीवरी (C-section) के बाद ज्यादा होता है।

3. हार्मोनल असंतुलन

  • प्रसव के बाद हार्मोनल बदलाव के कारण कुछ महिलाओं में लंबे समय तक ब्लीडिंग हो सकती है।

  • अगर हार्मोनल समस्या गंभीर हो, तो डॉक्टर से इलाज करवाना जरूरी है।

4. यूटेराइन एटोनी (Uterus का सही रूप में सिकुड़ना न)

  • अगर गर्भाशय सही तरीके से सिकुड़ नहीं रहा है, तो ब्लीडिंग लंबे समय तक चल सकती है।

  • यह अधिकतर उन महिलाओं में होता है जिनकी मल्टीपल प्रेग्नेंसी या बड़ी साइज का बेबी हुआ हो।

5. खून की कमी या ब्लड क्लॉटिंग समस्या

  • अगर किसी महिला को पहले से ब्लड क्लॉटिंग डिसऑर्डर है, तो उसे डिलीवरी के बाद ज्यादा समय तक ब्लीडिंग हो सकती है।

  • शरीर में आयरन की कमी होने से भी ब्लीडिंग ज्यादा हो सकती है।

निष्कर्ष:

प्रसव के बाद पीरियड्स आना शरीर के सामान्य होने का संकेत है। इसमें थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन अगर आप सही खान-पान और सेल्फ-केयर अपनाएंगी, तो यह प्रक्रिया आरामदायक हो सकती है। अगर आपको कोई असामान्य लक्षण दिखें, तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

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Dr. Sunita Singh Rathore

Dr. Sunita Singh Rathore

Dr. Sunita Singh Rathore is a highly experienced fertility specialist with over 15 years of expertise in assisted reproductive techniques. She has helped numerous couples achieve their dream of parenthood with a compassionate and patient-centric approach.