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सरोगेसी का मतलब है कि कोई महिला किसी और व्यक्ति या दंपति के लिए बच्चा पैदा करे. सरोगेसी को सहायक प्रजनन तकनीक माना जाता है. सरोगेसी में अंडे की मदद लेने से लेकर बच्चे के जन्म लेने तक की पूरी प्रक्रिया शामिल है.
सरोगेसी एक नई ज़िंदगी को इस दुनिया में लाने की एक खूबसूरत लेकिन जटिल प्रक्रिया है। यह सिर्फ़ एक मेडिकल प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक भावनात्मक, कानूनी और नैतिक सफर भी है। यदि आप सरोगेसी के जरिए माता-पिता बनने की सोच रहे हैं, तो आपको कई महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखना होगा, ताकि यह सफर सुरक्षित और खुशनुमा हो।
सरोगेसी के प्रकार और उनका महत्व
सरोगेसी को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है:
1. पारंपरिक सरोगेसी (Traditional Surrogacy)
इसमें सरोगेट मां का अपना अंडाणु (Egg) इस्तेमाल किया जाता है, और इसे इच्छुक पिता के शुक्राणु से निषेचित (fertilized) किया जाता है। इसका मतलब यह है कि सरोगेट मां बायोलॉजिकली भी बच्चे की मां होती है।
महत्व
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यह प्रक्रिया अधिक सरल और सस्ती होती थी, लेकिन आजकल इसे बहुत कम अपनाया जाता है, क्योंकि इसमें सरोगेट मां का बच्चे से जैविक संबंध होता है, जिससे कानूनी और भावनात्मक जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं।
2. गर्भाशय सरोगेसी या जेस्टेशनल सरोगेसी (Gestational Surrogacy)
यह सबसे आधुनिक और प्रचलित तरीका है। इसमें इच्छुक माता-पिता (या डोनर) के अंडाणु और शुक्राणु का निषेचन करके भ्रूण (Embryo) बनाया जाता है और उसे सरोगेट मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस प्रक्रिया में सरोगेट मां का बच्चे से कोई जैविक संबंध नहीं होता।
महत्व
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यह सबसे सुरक्षित और कानूनी रूप से स्वीकार्य तरीका है, क्योंकि इसमें सरोगेट मां सिर्फ़ बच्चे को जन्म देती है, लेकिन उसका डीएनए बच्चे से मेल नहीं खाता।
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यह उन महिलाओं के लिए फायदेमंद है, जो गर्भधारण करने में असमर्थ हैं लेकिन चाहती हैं कि बच्चा जैविक रूप से उनका हो।
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भारत सहित कई देशों में सिर्फ जेस्टेशनल सरोगेसी को ही कानूनी मान्यता प्राप्त है।
सरोगेसी भ्रूण स्थानांतरण से भी किया जाता है
भ्रूण स्थानांतरण की प्रक्रिया
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भ्रूण की तैयारी:
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पहले IVF प्रक्रिया के तहत महिला के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु को लैब में निषेचित (Fertilized) किया जाता है।
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निषेचन के बाद 3 से 5 दिनों तक भ्रूण को लैब में विकसित किया जाता है।
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भ्रूण की गुणवत्ता को जांचकर सबसे स्वस्थ भ्रूण को चुना जाता है।
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गर्भाशय की तैयारी:
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भ्रूण प्रत्यारोपण से पहले, महिला को हॉर्मोनल दवाएँ दी जाती हैं ताकि गर्भाशय की परत (एंडोमेट्रियम) भ्रूण के लिए तैयार हो।
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अल्ट्रासाउंड और रक्त परीक्षण द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि गर्भाशय भ्रूण को ग्रहण करने के लिए तैयार है।
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भ्रूण स्थानांतरण प्रक्रिया:
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भ्रूण को एक पतली कैथेटर (Catheter) के माध्यम से महिला के गर्भाशय में रखा जाता है।
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यह प्रक्रिया बिल्कुल दर्द रहित और बिना किसी एनेस्थीसिया (निश्चेतना) के की जाती है।
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डॉक्टर अल्ट्रासाउंड की मदद से भ्रूण को सही स्थान पर प्रत्यारोपित करता है।
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प्रक्रिया में केवल 5-10 मिनट लगते हैं और महिला उसी दिन घर जा सकती है।
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स्थानांतरण के बाद की देखभाल:
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महिला को कुछ दिनों तक आराम करने की सलाह दी जाती है।
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गर्भधारण की पुष्टि के लिए 10-14 दिनों के बाद रक्त परीक्षण (Beta hCG Test) किया जाता है।
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भ्रूण स्थानांतरण के प्रकार
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फ्रेश भ्रूण स्थानांतरण
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जब भ्रूण को IVF प्रक्रिया के तुरंत बाद, बिना फ्रीज किए गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।
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इस प्रक्रिया में महिला के हार्मोनल स्तर की सटीक निगरानी की जाती है।
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फ्रोजन भ्रूण स्थानांतरण
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यदि IVF के दौरान अधिक भ्रूण बनाए गए हों, तो कुछ भ्रूणों को फ्रीज (Cryopreservation) कर लिया जाता है।
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भविष्य में, जब महिला का गर्भाशय गर्भधारण के लिए अधिक अनुकूल हो, तब इन भ्रूणों को डीफ्रीज कर प्रत्यारोपित किया जाता है।
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FET के सफल होने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि यह अधिक नियंत्रित प्रक्रिया होती है।
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भ्रूण स्थानांतरण की सफलता को बढ़ाने के कारक
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भ्रूण की गुणवत्ता: स्वस्थ भ्रूण गर्भधारण की संभावना को बढ़ाते हैं।
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महिला की उम्र: 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में सफलता दर अधिक होती है।
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गर्भाशय की स्थिति: यदि एंडोमेट्रियम (गर्भाशय की परत) मोटी और स्वस्थ हो, तो प्रत्यारोपण की संभावना बढ़ती है।
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जीवनशैली और खान-पान: तनाव, धूम्रपान, शराब और अस्वास्थ्यकर खान-पान से बचना चाहिए।
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डॉक्टर के अनुभव: IVF विशेषज्ञ की दक्षता भी सफलता दर को प्रभावित करती है।
भ्रूण स्थानांतरण के बाद किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
भारी शारीरिक श्रम और व्यायाम से बचें।
स्वस्थ और पौष्टिक आहार लें।
धूम्रपान और शराब से दूर रहें।
तनाव से बचें और मानसिक शांति बनाए रखें।
दवाएँ और डॉक्टर की सलाह का पालन करें।
सरोगेसी का वर्तमान समय में महत्व
आज के दौर में, जब जीवनशैली और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बांझपन (infertility) की दर बढ़ रही है, सरोगेसी कई दंपतियों के लिए माता-पिता बनने की एक नई आशा लेकर आई है।
चिकित्सीय कारणों से संतान प्राप्ति में असमर्थ जोड़ों के लिए वरदान
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कुछ महिलाएं गर्भाशय से जुड़ी जटिलताओं (जैसे Uterine Disorders, Recurrent Miscarriage) से जूझती हैं, जिससे वे खुद गर्भधारण नहीं कर सकतीं।
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कैंसर जैसी बीमारियों के कारण कुछ महिलाओं का गर्भाशय हटाना पड़ता है।
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कुछ मामलों में गर्भावस्था मां के जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है। ऐसे में सरोगेसी एक सुरक्षित विकल्प बन सकती है।
एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए सहारा
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सरोगेसी समलैंगिक जोड़ों (LGBTQ+ couples) और सिंगल पेरेंट्स के लिए भी एक महत्वपूर्ण विकल्प बन चुकी है, हालांकि भारत में अभी तक सिर्फ़ विवाहित दंपतियों को ही इसकी अनुमति है।
अनाथालय या गोद लेने के विकल्प के अलावा एक जैविक संतान की संभावना
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सरोगेसी उन जोड़ों को मौका देती है, जो अपने जैविक बच्चे (Biological Child) के माता-पिता बनना चाहते हैं।
1. कानूनी पहलू: पूरी प्रक्रिया को सही तरीके से समझें
भारत में सरोगेसी को लेकर सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 लागू है, जिसके तहत केवल परोपकारी (अल्ट्रूइस्टिक) सरोगेसी की अनुमति है, जबकि व्यावसायिक (कॉमर्शियल) सरोगेसी पूरी तरह प्रतिबंधित है।
कौन कर सकता है?
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केवल विवाहित भारतीय दंपति जिनकी शादी को कम से कम 5 साल हो चुके हों और वे किसी गंभीर मेडिकल कारण से संतान पैदा करने में असमर्थ हों।
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पति की आयु 26-55 वर्ष और पत्नी की आयु 23-50 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
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समलैंगिक जोड़ों, सिंगल पेरेंट्स और विदेशियों के लिए भारत में सरोगेसी की अनुमति नहीं है।
सरोगेट मां की पात्रता
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उसकी उम्र 25-35 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
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उसके पास पहले से कम से कम एक स्वस्थ संतान होनी चाहिए।
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वह इच्छुक दंपति की निकट रिश्तेदार होनी चाहिए।
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उसे किसी गंभीर बीमारी का इतिहास नहीं होना चाहिए और मेडिकल रूप से पूरी तरह फिट होना चाहिए।
कानूनी अनुबंध ज़रूरी है
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प्रक्रिया शुरू करने से पहले सरोगेट मां और इच्छुक माता-पिता के बीच एक लिखित कानूनी अनुबंध होना बहुत ज़रूरी है।
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इस अनुबंध में सरोगेसी की सभी शर्तें, बच्चे की ज़िम्मेदारी और मेडिकल खर्च से जुड़े सभी पहलुओं को स्पष्ट किया जाना चाहिए।
2. सही सरोगेट मां का चुनाव कैसे करें?
सरोगेट मां चुनना सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक है। यह सिर्फ़ उसके मेडिकल फिटनेस की बात नहीं, बल्कि उसके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी समझना ज़रूरी है।
सरोगेट मां का अच्छा स्वास्थ्य ज़रूरी
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किसी भी तरह की अनुवांशिक बीमारी, हृदय रोग, डायबिटीज़ या हाई ब्लड प्रेशर न हो।
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उसका बीएमआई (BMI) सामान्य सीमा में होना चाहिए।
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पहले के गर्भधारण और डिलीवरी सामान्य रहे हों (कोई बड़ा कॉम्प्लिकेशन न हुआ हो)।
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सरोगेट की शारीरिक और मानसिक स्थिति:
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शारीरिक स्वास्थ्य: सरोगेट की शारीरिक स्थिति, जैसे कि पोषण, वजन, और शरीर की स्थिति पर ध्यान दिया जाता है ताकि गर्भावस्था के दौरान किसी भी समस्या से बचा जा सके।
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मानसिक स्वास्थ्य: मानसिक स्थिति की निगरानी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि सरोगेट के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का सीधा असर गर्भावस्था पर पड़ सकता है। तनाव, अवसाद या चिंता जैसी स्थितियाँ गर्भावस्था को प्रभावित कर सकती हैं।
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मानसिक रूप से तैयार हो
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वह पूरी तरह इस प्रक्रिया को समझे और इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो।
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उसे इस बात का अहसास होना चाहिए कि यह बच्चा उसका नहीं होगा, और वह जन्म के बाद उस पर कोई अधिकार नहीं रखेगी।
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भावनात्मक रूप से स्थिर और परिपक्व महिला होनी चाहिए।
परिवार का सहयोग हो
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सरोगेट मां को अपने परिवार का पूरा समर्थन होना चाहिए, क्योंकि सरोगेसी का सफर लंबा और चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सही मेडिकल टीम और एजेंसी का चयन करें
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भले ही भारत में व्यावसायिक सरोगेसी की अनुमति नहीं है, लेकिन कुछ सरकारी पंजीकृत एजेंसियां इस प्रक्रिया में मार्गदर्शन कर सकती हैं।
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एक अच्छे आईवीएफ सेंटर और अनुभवी डॉक्टरों की टीम का चुनाव करें।
संपर्क करे: Behind BSES Rajdhani Power Station, Katwaria Sarai, Delhi 110016, +91-9643264509, info@vinsfertility.com
3. मेडिकल और स्वास्थ्य पहलू
सरोगेसी सिर्फ एक कानूनी या भावनात्मक सफर नहीं, बल्कि एक संपूर्ण मेडिकल प्रक्रिया भी है। इसलिए इसकी बारीकियों को समझना बेहद ज़रूरी है।
जरूरी स्वास्थ्य जांचें
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सरोगेट मां और इच्छुक माता-पिता दोनों को कई मेडिकल परीक्षणों से गुजरना पड़ता है, जिसमें ब्लड टेस्ट, फर्टिलिटी टेस्ट, जेनेटिक टेस्ट आदि शामिल हैं।
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सुनिश्चित करें कि सरोगेट मां को किसी प्रकार का संक्रमण, थायरॉइड, ब्लड प्रेशर या अन्य कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या न हो।
आईवीएफ प्रक्रिया और गर्भधारण
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निषेचन (फर्टिलाइजेशन) के लिए इच्छुक माता-पिता के अंडाणु और शुक्राणु का उपयोग किया जाएगा।
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भ्रूण को आईवीएफ तकनीक के ज़रिए सरोगेट मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित (इम्प्लांट) किया जाता है।
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गर्भावस्था के दौरान नियमित मेडिकल चेकअप और देखभाल बहुत जरूरी है।
गर्भावस्था के दौरान सरोगेट मां की देखभाल
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संतुलित आहार और पोषण का पूरा ध्यान रखें।
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मानसिक रूप से सकारात्मक माहौल दें ताकि वह तनाव मुक्त रहे।
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डॉक्टर द्वारा बताई गई सभी दवाएं और जांच समय पर करवाई जाएं।
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उसके लिए मेडिकल इंश्योरेंस ज़रूर करवाएं ताकि कोई अप्रत्याशित समस्या आने पर इलाज में दिक्कत न हो।
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हॉर्मोनल चेक: सरोगेट की हॉर्मोनल स्थिति की निगरानी की जाती है, क्योंकि प्रजनन उपचार में हॉर्मोनल उपचार की आवश्यकता हो सकती है।
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गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताएँ: उच्च रक्तचाप, मधुमेह, या गर्भावस्था की अन्य समस्याओं की निगरानी की जाती है।
4. भावनात्मक और सामाजिक तैयारी
सरोगेसी केवल एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह भावनात्मक रूप से भी एक गहरा अनुभव होता है।
इच्छुक माता-पिता को मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए
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सरोगेसी की प्रक्रिया 6 महीने से लेकर 1 साल तक चल सकती है।
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कई बार आईवीएफ के प्रयास असफल हो सकते हैं, जिसके लिए मानसिक रूप से तैयार रहना जरूरी है।
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बच्चे के जन्म के बाद एक नया जीवन शुरू होने वाला है, जिसके लिए भावनात्मक रूप से तैयार रहना जरूरी है।
सरोगेट मां के साथ अच्छे संबंध बनाएं
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सरोगेट मां को सिर्फ़ ‘सेवा प्रदाता’ न समझें, बल्कि उसके साथ सहानुभूति और सम्मानजनक रिश्ता रखें।
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यदि वह मानसिक रूप से खुश रहेगी, तो गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा।
5. बच्चे के जन्म के बाद की तैयारी
कानूनी अधिकार और जन्म प्रमाण पत्र
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बच्चे के जन्म के बाद उसका जन्म प्रमाण पत्र इच्छुक माता-पिता के नाम से जारी किया जाएगा।
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सरोगेट मां का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं रहेगा।
बच्चे के प्रति माता-पिता की जिम्मेदारी
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जन्म के बाद माता-पिता को बच्चे की देखभाल और पालन-पोषण की पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी।
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यह समझना जरूरी है कि बच्चे के लिए एक प्यार भरा, सुरक्षित और स्थिर माहौल बनाया जाए।
मुख्य बिंदु: सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019
1. केवल परोपकारी (Altruistic) सरोगेसी की अनुमति
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भारत में अब केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति है, जिसका अर्थ है कि सरोगेट मां को किसी प्रकार का आर्थिक लाभ नहीं मिलेगा।
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केवल मेडिकल और गर्भावस्था से जुड़े खर्चों की भरपाई की जा सकती है।
2. वाणिज्यिक (Commercial) सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध
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सरोगेट माताओं के शोषण और मानव तस्करी को रोकने के लिए व्यावसायिक सरोगेसी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
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पहले भारत को "सरोगेसी हब" कहा जाता था, जहाँ विदेशी नागरिक भी सरोगेसी की सुविधा का लाभ उठाते थे, लेकिन अब यह केवल भारतीय दंपतियों तक सीमित कर दिया गया है।
3. कौन सरोगेसी करा सकता है? (योग्यता)
सरोगेसी का लाभ लेने के लिए निम्नलिखित शर्तें रखी गई हैं:
भारतीय नागरिक होना जरूरी।
कम से कम 5 साल से विवाहित दंपति होना चाहिए।
महिला की उम्र 23-50 वर्ष और पुरुष की उम्र 26-55 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
महिला को मेडिकल कारणों से संतान प्राप्ति में असमर्थ होना चाहिए।
पहले से कोई जीवित संतान नहीं होनी चाहिए (कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर)।
4. सरोगेट मां के लिए नियम और शर्तें
सरोगेट मां को 25 से 35 वर्ष के बीच की उम्र की विवाहित महिला होना चाहिए।
उसे पहले से एक स्वस्थ संतान होनी चाहिए।
वह केवल अपने करीबी रिश्तेदारों में से हो सकती है (जैसे बहन, भाभी, मौसी)।
वह अपने जीवन में सिर्फ एक बार सरोगेट बन सकती है।
उसकी पूरी तरह से स्वेच्छा से सहमति (Consent) होनी चाहिए।
5. सरोगेसी के लिए राष्ट्रीय बोर्ड और राज्य बोर्ड की स्थापना
सरोगेसी की प्रक्रिया को संगठित और पारदर्शी बनाने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय बोर्ड बनाए जाएंगे। ये बोर्ड निम्नलिखित कार्य करेंगे:
सरोगेसी केंद्रों का पंजीकरण और निगरानी।
सरोगेट माताओं और इच्छुक दंपतियों की पात्रता की पुष्टि।
सरोगेसी के नैतिक और कानूनी पहलुओं की देखरेख।
6. सरोगेट बच्चे के अधिकार और माता-पिता की जिम्मेदारी
बच्चे के जन्म के तुरंत बाद, उसे इच्छुक माता-पिता की संतान के रूप में दर्ज किया जाएगा।
सरोगेट मां का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होगा।
बच्चे को गोद लेने (Adoption) से जुड़े किसी अन्य कानूनी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होगी।
7. सरोगेसी के दुरुपयोग पर कड़ी सजा
गैरकानूनी सरोगेसी कराने पर 10 साल तक की सजा और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
व्यावसायिक सरोगेसी में शामिल पाए जाने वाले डॉक्टर, क्लीनिक या दलालों पर कड़ी कार्रवाई होगी
सरोगेसी अनुबंध और उसकी गर्भावस्था व्यवस्था
सरोगेसी एक जटिल लेकिन खूबसूरत प्रक्रिया है, जिसमें एक महिला (सरोगेट मां) किसी अन्य दंपति के लिए बच्चे को जन्म देती है। इस प्रक्रिया को कानूनी और नैतिक रूप से सुरक्षित बनाने के लिए सरोगेसी अनुबंध (Surrogacy Contract) बेहद जरूरी होता है।
इन केंद्रों में उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सेवाएँ और अत्याधुनिक उपकरण होते हैं जो प्रजनन समस्याओं को हल करने में मदद करते हैं। एआरटी उपचार के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर, भ्रूणविज्ञानी, नर्सें और अन्य चिकित्सा पेशेवरों की टीम काम करती है।
क्या आप इस विषय में अधिक जानकारी चाहते हैं या कुछ विशेष पूछना चाहते हैं?info@vinsfertility.com
नेशनल सरोगेसी बोर्ड (National Surrogacy Board - NSB) भारत में सरोगेसी से संबंधित मामलों की निगरानी और विनियमन करने वाली एक सरकारी संस्था है। इसे भारत सरकार द्वारा "सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021" के तहत स्थापित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य सरोगेसी प्रक्रियाओं को नैतिक, कानूनी और चिकित्सा मानकों के अनुरूप बनाए रखना है।
सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधान:
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व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध – सरोगेट मां को केवल चिकित्सा खर्च और बीमा मिलेगा, कोई अतिरिक्त पैसा नहीं दिया जाएगा।
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केवल भारतीय नागरिकों को सरोगेसी की अनुमति – विदेशी नागरिकों और NRIs को सरोगेसी कराने की अनुमति नहीं है।
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कौन सरोगेसी करा सकता है? – केवल विवाहित भारतीय जोड़े (महिला की उम्र 23-50 वर्ष और पुरुष की उम्र 26-55 वर्ष) जिनके संतान नहीं है।
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सरोगेट मां के लिए शर्तें – केवल विवाहित महिला (25-35 वर्ष) जो पहले से एक संतान की मां हो, वह सरोगेट बन सकती है।
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राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय बोर्ड – नेशनल सरोगेसी बोर्ड और स्टेट सरोगेसी बोर्ड गठित किए जाएंगे।
सरोगेसी के लाभ और चुनौतियाँ
लाभ:
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जोड़ों को जैविक संतान प्राप्त करने का अवसर मिलता है।
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गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों को एक नया समाधान।
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IVF की असफलता के बाद भी माता-पिता बनने का मौका।
चुनौतियाँ:
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कानूनी और नैतिक जटिलताएँ।
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सरोगेट मां और इच्छुक माता-पिता के बीच भावनात्मक संबंध।
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प्रक्रिया की उच्च लागत और लंबी समयावधि।
निष्कर्ष: सरोगेसी – विज्ञान की एक अनमोल देन
सरोगेसी आज केवल एक मेडिकल प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक नई ज़िंदगी की उम्मीद बन गई है। यह उन माता-पिता के लिए एक वरदान है, जो किसी न किसी कारण से संतान प्राप्ति में असमर्थ हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया को अपनाने से पहले कानूनी, चिकित्सा और नैतिक पहलुओं पर विचार करना बेहद ज़रूरी है।
सरोगेसी न सिर्फ़ विज्ञान की उन्नति का एक उदाहरण है, बल्कि यह दिखाता है कि माँ बनने का एहसास सिर्फ़ गर्भधारण तक सीमित नहीं, बल्कि प्यार, देखभाल और जिम्मेदारी से जुड़ा हुआ है।