क्या आपने कभी सोचा है कि माँ बनने की चाहत और विज्ञान का मेल कितना अद्भुत हो सकता है? जब उम्मीदें टूटती हैं तो विज्ञान उम्मीद जगाता है, और सुरोगेसी उसी उम्मीद की एक खूबसूरत मिसाल है! आइए एक रोमांचक यात्रा पर चलें, जहाँ "किराये की कोख" सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि अनगिनत परिवारों के लिए एक नई सुबह है।

सुरोगेसी क्या है? चलिए आसान शब्दों में समझते हैं 

सुरोगेसी यानी जब एक महिला (सुरोगेट माँ) किसी और के लिए बच्चा पैदा करती है। सोचिए, किसी के चेहरे पर खुशी लाने का इससे बड़ा उपहार क्या हो सकता है? एक ऐसा तोहफा जो जीवनभर याद रहेगा!

लोग सुरोगेसी क्यों चुनते हैं? कारण जानकर चौंक जाएंगे!

जब बार-बार गर्भपात हो जाए.
जब कोई महिला स्वास्थ्य कारणों से गर्भधारण न कर सके
जब समलैंगिक जोड़े माता-पिता बनना चाहें
या फिर जब कोई अकेला व्यक्ति माँ/पिता बनना चाहे.

सुरोगेसी हर दिल की दुआ पूरी करने का एक अनोखा जरिया है!

जैविक माता-पिता

जैविक माता-पिता की पहचान का सवाल अक्सर तब उठता है जब सरोगेसी या अडॉप्शन जैसी प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है। जैविक माता-पिता वे होते हैं जिनका आनुवंशिक योगदान बच्चे के जन्म में शामिल होता है, यानी जिनके अंडाणु (Egg) और शुक्राणु (Sperm) से बच्चा उत्पन्न होता है।

1. जैविक माता-पिता के पहचान के प्रमुख पहलू:

जैविक माता:

  • जैविक माता वह महिला होती है जिनका अंडाणु (Egg) उस बच्चे के लिए उपयोग किया जाता है। यदि एक महिला खुद गर्भवती नहीं हो सकती और सरोगेसी की प्रक्रिया का सहारा लेती है, तो भी उसके अंडाणु का उपयोग किया जा सकता है।

  • उदाहरण के लिए, अगर एक महिला अपनी उम्र, स्वास्थ्य या अन्य कारणों से प्राकृतिक रूप से गर्भवती नहीं हो सकती, तो वह अपने अंडाणु को निषेचित करने के लिए एक डोनर से या अपने ही अंडाणु से IVF (इनविट्रो फर्टिलाइजेशन) प्रक्रिया के जरिए एक बच्चे का जन्म दे सकती है। इस स्थिति में, जैविक माता वही महिला होगी, जिसका अंडाणु प्रयोग हुआ है।

जैविक पिता :

  • जैविक पिता वह पुरुष होते हैं जिनका शुक्राणु उस बच्चे को जन्म देने के लिए उपयोग किया जाता है। अगर एक पुरुष और महिला प्राकृतिक रूप से संतान उत्पन्न करने में सक्षम नहीं होते हैं, तो वे शुक्राणु दान (Sperm Donation) या IVF की प्रक्रिया का उपयोग कर सकते हैं।

  • यदि कोई पुरुष जैविक पिता के रूप में अपनी भूमिका निभाता है, तो उसके शुक्राणु का उपयोग बच्चे के लिए किया जाता है, भले ही वह बच्चा किसी अन्य महिला के गर्भ में पल रहा हो।

2. जैविक माता-पिता की पहचान सरोगेसी में:

जब सरोगेसी की बात आती है, तो स्थिति थोड़ी अलग हो सकती है। सरोगेट मां का कार्य शारीरिक रूप से बच्चे को अपने गर्भ में पालने का होता है, लेकिन बच्चा जैविक रूप से उसके अपने नहीं होते। सरोगेसी के माध्यम से एक बच्चा पैदा करने वाले जोड़े के लिए, वे अपनी जैविक पहचान को लेकर भ्रमित हो सकते हैं, खासकर अगर सरोगेट मां का अंडाणु या शुक्राणु दाता का उपयोग किया गया हो।

  • गर्भधारण करने वाली महिला (सरोगेट मां) शारीरिक रूप से बच्चे को जन्म देती है, लेकिन वह जैविक माता नहीं होती (यदि उसके अंडाणु का उपयोग नहीं किया गया है)।

  • जैविक माता और पिता वे होते हैं, जिनके अंडाणु और शुक्राणु से बच्चा उत्पन्न होता है। यदि IVF में केवल एक अंडाणु या शुक्राणु डोनर का उपयोग किया जाता है, तो डोनर को जैविक माता या पिता माना जाएगा।

3. जैविक माता-पिता और कानूनी अधिकार:

कभी-कभी, कानूनी दृषटिकोन से जैविक माता-पिता की पहचान स्पष्ट नहीं होती है, खासकर सरोगेसी और अडॉप्शन के मामलों में। कानूनी दृष्टिकोण से, कई देशों में यह कानून निर्धारित करता है कि एक बच्चे का कानूनी पिता और कानूनी माता कौन होंगे, जो जैविक माता-पिता से अलग हो सकते हैं, विशेष रूप से सरोगेसी के मामलों में।

  • सरोगेसी में कानूनी मुद्दे: यदि सरोगेट मां बच्चे को जन्म देती है, तो अक्सर कानूनी प्रक्रिया के तहत यह निर्धारित किया जाता है कि बच्चे के कानूनी माता-पिता वही होंगे जिनके शुक्राणु और अंडाणु से बच्चा उत्पन्न हुआ है। इसलिए, जैविक माता-पिता का कानूनी रूप से भी पहचान करना महत्वपूर्ण है।

4. जैविक माता-पिता की पहचान के सामाजिक और भावनात्मक पहलू:

जैविक माता-पिता की पहचान कभी-कभी केवल आनुवंशिक आधार पर नहीं, बल्कि भावनात्मक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भी देखी जाती है। उदाहरण के लिए, अगर एक दंपत्ति ने सरोगेसी का विकल्प चुना और उनके अंडाणु और शुक्राणु से बच्चा पैदा हुआ, तो वे ही उस बच्चे के भावनात्मक और सामाजिक माता-पिता माने जाते हैं, भले ही जैविक माता-पिता की पहचान अलग हो।

प्रसिद्ध हस्तियों का सरोगेसी अनुभव

क्या आप जानते हैं? शाहरुख़ खान के बेटे अबराम, आमिर खान के बेटे आज़ाद और प्रियंका चोपड़ा की बेटी मालती मैरी भी सुरोगेसी के जरिये इस दुनिया में आई हैं! ये सितारे खुलकर सुरोगेसी के समर्थन में सामने आए हैं, जिससे समाज की सोच भी बदल रही है।

सुरोगेसी के फायदे: खुशियों की चाबी!

संतान का सुख: उन दंपत्तियों के लिए उम्मीद जो माता-पिता बनने का सपना देख रहे हैं।
जैविक संबंध बना रहता है: जेस्टेशनल सुरोगेसी में बच्चा आपके ही डीएनए से होता है!
सुरक्षित प्रक्रिया: आधुनिक तकनीक इसे बेहद सुरक्षित बनाती है।

सरोगेसी की चुनौतियाँ

सरोगेसी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक महिला (सरोगेट मां) किसी अन्य जोड़े के लिए बच्चे को गर्भ में पालने का काम करती है। यह उन जोड़ों के लिए एक विकल्प होता है, जिनमें संतान पैदा करने में शारीरिक या अन्य कारणों से समस्या आती है। हालांकि यह एक उपयुक्त समाधान हो सकता है, लेकिन सरोगेसी के साथ कई चुनौतियाँ भी जुड़ी होती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

1. कानूनी चुनौतियाँ

  • कानूनी अधिकारों की अस्पष्टता: सरोगेसी के मामलों में कानूनी अधिकारों का मुद्दा अक्सर जटिल होता है। यदि सरोगेट मां बच्चे को जन्म देने के बाद उसे देने से मना कर देती है, तो इस मामले में कानूनी संघर्ष हो सकता है।

  • कानूनी नियमों की कमी: कई देशों में सरोगेसी के लिए स्पष्ट कानूनी ढांचा नहीं है, जिससे विवादों का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, भारत में पहले सरोगेसी के लिए एक स्पष्ट कानून था, लेकिन अब इसे कुछ देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है।

2. भावनात्मक और मानसिक तनाव

  • सरोगेट मां का मानसिक दबाव: सरोगेट मां को गर्भावस्था के दौरान और बच्चे को जन्म देने के बाद मानसिक और भावनात्मक दबाव का सामना करना पड़ सकता है। बच्चे से जुड़ी भावनाएँ, जैसे कि जुड़ाव या परित्याग की भावनाएँ, सरोगेट मां के लिए कठिन हो सकती हैं।

  • स्वीकार्यता की समस्या: कई बार दंपत्ति को यह मानसिक संघर्ष हो सकता है कि उनका बच्चा एक अन्य महिला के गर्भ से उत्पन्न हुआ है, जो भावनात्मक रूप से उनकी प्राथमिकता को प्रभावित कर सकता है।

3. शारीरिक चुनौतियाँ

  • गर्भावस्था संबंधित जोखिम: जैसे कि सामान्य गर्भधारण में जोखिम होते हैं, वैसे ही सरोगेसी में भी गर्भावस्था के दौरान शारीरिक जोखिम हो सकते हैं, जैसे कि उच्च रक्तचाप, गर्भाशय संक्रमण, और प्रीटरम डिलीवरी।

  • बच्चे की स्वास्थ्य समस्याएँ: कभी-कभी सरोगेसी के दौरान उत्पन्न बच्चे के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। खासकर, जब IVF (इनविट्रो फर्टिलाइजेशन) का इस्तेमाल किया जाता है, तब जुड़वा या त्रैतीयक बच्चों के जन्म की संभावना अधिक हो सकती है, जो चिकित्सा जोखिम बढ़ा सकते हैं।

4. आर्थिक चुनौतियाँ

  • महंगा खर्च: सरोगेसी एक महंगी प्रक्रिया है, जिसमें कई खर्च होते हैं जैसे कि मेडिकल खर्च, सरोगेट मां को भुगतान, कानूनी शुल्क, और अन्य प्रशासनिक खर्चे। इससे कई परिवारों के लिए यह एक बड़ा आर्थिक बोझ बन सकता है।

  • बच्चे को जन्म देने की फीस: सरोगेट मां को भुगतान की राशि भी अक्सर उच्च होती है, जो आर्थिक दृष्टिकोण से एक चुनौती हो सकती है।

5. सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियाँ

  • सामाजिक स्वीकार्यता: कुछ संस्कृतियों और समाजों में सरोगेसी को लेकर नकारात्मक दृष्टिकोण होता है। यह समाज के कुछ वर्गों में विवाद और आलोचना का कारण बन सकता है।

  • परिवार और रिश्तेदारों का दबाव: परिवार और रिश्तेदारों का सरोगेसी के प्रति दृष्टिकोण भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि यह एक पारंपरिक परिवार संरचना से बाहर की प्रक्रिया है।

6. जीन और पैतृकता के मुद्दे

  • कभी-कभी सरोगेट मां और माता-पिता के बीच जीनों की पहचान से जुड़ी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यदि सरोगेट मां का बच्चा जन्म देती है, तो वह जीन और पैतृकता संबंधों के मामले में भ्रमित कर सकती है।

इन सभी चुनौतियों के बावजूद, सरोगेसी एक महत्वपूर्ण विकल्प हो सकता है, खासकर उन जोड़ों के लिए जिनके लिए प्राकृतिक गर्भधारण संभव नहीं है। इस प्रक्रिया को कानूनी, मानसिक, और शारीरिक दृष्टिकोण से पूरी तरह से समझने और तैयार रहने की आवश्यकता होती है।

क्या सुरोगेसी आपके लिए सही विकल्प है?

अगर आप माँ-बाप बनने का सपना देख रहे हैं और रास्ते बंद लगते हैं, तो सुरोगेसी एक नई उम्मीद दे सकती है! लेकिन फ़ैसले से पहले: डॉक्टर से सलाह लें


कानूनी पहलुओं को समझें
दिल से सोचें और परिवार के साथ चर्चा करें

सरोगेसी (Surrogacy) का खर्च कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि देश, क्लिनिक, कानूनी प्रक्रियाएँ, और सरोगेट मां को दी जाने वाली सुविधा। भारत में सरोगेसी का खर्च आमतौर पर निम्नलिखित बातों पर आधारित होता है:

1. मेडिकल खर्च

यह खर्च सरोगेसी प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

आईवीएफ (IVF) और भ्रूण स्थानांतरण: ₹3 लाख - ₹5 लाख

  • एग डोनेशन (यदि आवश्यक हो): ₹50,000 - ₹2 लाख

  • स्पर्म प्रोसेसिंग और फर्टिलाइजेशन

  • भ्रूण विकास और स्थानांतरण प्रक्रिया

प्रेग्नेंसी के दौरान मेडिकल देखभाल: ₹2 लाख - ₹4 लाख

  • नियमित चेकअप, अल्ट्रासाउंड, रक्त परीक्षण

  • जटिलताओं के मामलों में अतिरिक्त देखभाल

डिलीवरी खर्च: ₹80,000 - ₹2 लाख

  • सामान्य डिलीवरी या सी-सेक्शन

  • अस्पताल में भर्ती और नवजात देखभाल

2. सरोगेट मां का मुआवजा

कानूनी अल्ट्रूइस्टिक सरोगेसी (भारत में मान्य): केवल मेडिकल खर्च और देखभाल कवर की जाती है।
अनौपचारिक या अवैध कमर्शियल सरोगेसी: ₹5 लाख - ₹10 लाख (कभी-कभी इससे अधिक)

3. कानूनी और प्रशासनिक खर्च

वकील की फीस और कानूनी दस्तावेज़: ₹50,000 - ₹2 लाख
अदालत की प्रक्रिया (बर्थ सर्टिफिकेट, पैतृक अधिकार): ₹20,000 - ₹50,000
एग्रीमेंट ड्राफ्टिंग और नोटरी फीस

4. अन्य खर्च

सरोगेट मां का आवास और देखभाल: ₹1 लाख - ₹3 लाख
यात्रा और परिवहन खर्च: ₹50,000 - ₹1 लाख
पोषण और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल: ₹50,000 - ₹1 लाख
बीमा कवरेज (यदि आवश्यक हो): ₹1 लाख - ₹2 लाख

कुल अनुमानित खर्च (भारत में)

₹10 लाख - ₹20 लाख (अल्ट्रूइस्टिक सरोगेसी के लिए)
₹15 लाख - ₹25 लाख या अधिक (अगर अतिरिक्त सेवाएँ ली जाती हैं)

विदेशों में सरोगेसी का खर्च

  • अमेरिका: ₹80 लाख - ₹1.5 करोड़

  • यूक्रेन/जॉर्जिया: ₹25 लाख - ₹40 लाख

  • कनाडा/ऑस्ट्रेलिया: ₹50 लाख - ₹1 करोड़

भारत में कानूनी स्थिति (2024)

अल्ट्रूइस्टिक सरोगेसी की अनुमति: विवाहित भारतीय जोड़ों को ही मान्य।
कमर्शियल सरोगेसी: भारत में प्रतिबंधित।
सरोगेट मां के लिए शर्तें:

  • उम्र: 25-35 वर्ष

  • पहले से एक स्वस्थ बच्चे की मां

  • मेडिकल फिटनेस जरूरी

महत्वपूर्ण सलाह

हमेशा रजिस्टर्ड सरोगेसी एजेंसी या अस्पताल से संपर्क करें।
कानूनी सलाह अनिवार्य है ताकि भविष्य में जटिलताएँ न हों।
सरोगेट मां के स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति का ध्यान रखें।

सरोगेसी के कानूनी पहलू: भारत में नियम, वैधता और आवश्यकताएँ

सरोगेसी एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें चिकित्सा, भावनात्मक और कानूनी पहलुओं का गहरा संबंध होता है। भारत में सरोगेसी को लेकर कई बदलाव हुए हैं ताकि यह प्रक्रिया पारदर्शी, नैतिक और सभी पक्षों के लिए सुरक्षित बनी रहे। भारत सरकार ने सरोगेसी से जुड़े कानूनों को सख्त करते हुए मानवाधिकारों की रक्षा, शोषण रोकने और उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए एक सशक्त कानूनी ढांचा तैयार किया है।

भारत में सरोगेसी की वैधता और कानूनी ढांचा

भारत में "सरोगेसी (रेगुलेशन) अधिनियम 2021" लागू है, जो सरोगेसी को वैध तो मानता है लेकिन केवल अल्ट्रूइस्टिक सरोगेसी की अनुमति देता है। अल्ट्रूइस्टिक सरोगेसी का मतलब है कि सरोगेट मदर को केवल मेडिकल खर्च और देखभाल का खर्च दिया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कोई आर्थिक लाभ या व्यापारिक उद्देश्य नहीं हो सकता। यह कानून सरोगेट मदर के शोषण को रोकने के लिए बनाया गया है और सरोगेसी प्रक्रिया को पूरी तरह से मानवीय और नैतिक रखता है।

कमर्शियल सरोगेसी, जिसमें सरोगेट मां को पैसे देकर गर्भधारण कराया जाता था, अब भारत में पूरी तरह से प्रतिबंधित है। यह कदम उन घटनाओं के बाद उठाया गया, जहां आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं का शोषण हो रहा था।

कौन करवा सकता है सरोगेसी? (सरोगेसी करवाने वाले कपल के लिए शर्तें)

  1. भारतीय नागरिक होना अनिवार्य:
    केवल भारतीय नागरिकों को सरोगेसी की अनुमति है। विदेशी नागरिकों और एनआरआई के लिए सरोगेसी पर प्रतिबंध है, ताकि भारत को सरोगेसी पर्यटन का केंद्र बनने से रोका जा सके।

  2. कपल की उम्र और वैवाहिक स्थिति:

    • पति की उम्र: 26 से 55 वर्ष

    • पत्नी की उम्र: 23 से 50 वर्ष

    • शादी को कम से कम पांच साल पूरे होने चाहिए।

    • सिंगल पुरुष, सिंगल महिला या लिव-इन कपल्स को सरोगेसी की अनुमति नहीं है।

  3. बांझपन का प्रमाण:
    सरोगेसी तभी करवाई जा सकती है जब महिला को चिकित्सकीय रूप से बच्चा पैदा करने में असमर्थ घोषित किया गया हो।

  4. पहले से कोई संतान नहीं होनी चाहिए:
    यदि कपल के पास पहले से स्वस्थ बच्चा है, तो उन्हें सरोगेसी की अनुमति नहीं दी जाती (कुछ चिकित्सकीय अपवादों को छोड़कर)।

सरोगेट मदर के लिए कानूनी आवश्यकताएँ

सरोगेट मदर चुनते समय भी कई कड़े नियम लागू होते हैं, जैसे:

उम्र 25 से 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
पहले से कम से कम एक स्वस्थ बच्चे की मां होनी चाहिए।
वह Intended Parents की निकट रिश्तेदार होनी चाहिए (जैसे बहन, भाभी या नजदीकी पारिवारिक सदस्य)।
मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट होना चाहिए।
सरोगेट मदर के लिए केवल एक बार सरोगेसी करने की अनुमति है।

यह नियम सरोगेट मां के स्वास्थ्य और भावनात्मक स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए हैं।

कानूनी प्रक्रिया और जरूरी दस्तावेज़

सरोगेसी प्रक्रिया शुरू करने से पहले Intended Parents और सरोगेट मदर को कुछ जरूरी कानूनी औपचारिकताएँ पूरी करनी होती हैं:

कानूनी समझौता (Legal Agreement):

  • इसमें गर्भधारण से लेकर बच्चे के जन्म तक की सभी शर्तें और जिम्मेदारियां लिखित होती हैं।

  • सरोगेट मदर को किसी भी परिस्थिति में बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता।

अभिभावकत्व प्रमाण पत्र (Parental Order):
बच्चे के जन्म के बाद, Intended Parents को अदालत से अभिभावकत्व प्रमाण पत्र लेना होता है, जो बच्चे के कानूनी माता-पिता के रूप में उनकी मान्यता देता है।

गोपनीयता बनाए रखना:
कानून के तहत सरोगेट मदर और Intended Parents दोनों की पहचान को गोपनीय रखना अनिवार्य है।

सरोगेसी से जुड़े क्या-क्या अवैध हैं?

सरोगेसी के जरिए लिंग परीक्षण या चयन करना अवैध है।
रोगेसी के लिए विदेशी नागरिकों या समलैंगिक जोड़ों को अनुमति नहीं है।
आर्थिक लालच देकर सरोगेट मदर को मजबूर करना अपराध है।
सरोगेसी विज्ञापन देना प्रतिबंधित है।

भारत में सरोगेसी कानून का उद्देश्य क्या है?

सरोगेट मदर की सुरक्षा:
यह सुनिश्चित करना कि कोई महिला मजबूरी में या शोषण का शिकार न बने।

बच्चे के अधिकारों की रक्षा:
बच्चे को जन्म के बाद तुरंत कानूनी माता-पिता मिलें और कोई कानूनी उलझन न हो।

नैतिकता और पारदर्शिता:
सरोगेसी प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और मानवता के दायरे में रहे।

क्या यह कानून सभी के लिए फायदेमंद है?

हाँ, लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं।
जो दंपति सिंगल हैं या जिनकी शादी को 5 साल पूरे नहीं हुए, वे इससे वंचित रह जाते हैं।
Intended Parents को कानूनी प्रक्रिया में समय और धैर्य दोनों रखना होता है।

हालांकि, इसका उद्देश्य स्पष्ट है – शोषण रोकना, ममता का सम्मान करना और एक नैतिक समाज बनाना

सरोगेसी की प्रक्रिया और प्रकार: ममता की अनोखी यात्रा

मां बनने का सपना हर महिला के दिल में होता है, लेकिन जब प्राकृतिक रास्ते बंद हो जाते हैं, तो सरोगेसी आशा की किरण बनती है। सरोगेसी केवल एक मेडिकल प्रक्रिया नहीं बल्कि एक भावनात्मक, कानूनी और सामाजिक यात्रा है। इसमें सरोगेट मदर, इच्छुक माता-पिता (Intended Parents), डॉक्टर और कानूनी विशेषज्ञों का अहम योगदान होता है। इस प्रक्रिया को समझना जरूरी है ताकि यह सफर सरल और सुरक्षित हो सके। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।

सरोगेसी की प्रक्रिया: एक चरण-दर-चरण सफर

  1. कानूनी एग्रीमेंट (Legal Agreement): सरोगेसी का पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है कानूनी समझौता। इसमें इच्छुक माता-पिता और सरोगेट मदर के बीच एक लिखित अनुबंध तैयार किया जाता है, जिसमें दोनों पक्षों के अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का उल्लेख होता है। यह एग्रीमेंट गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा खर्चों, संभावित जोखिमों और बच्चे के जन्म के बाद के अभिभावक अधिकारों को स्पष्ट करता है। भारत में सरोगेसी (नियमन) अधिनियम 2021 के तहत केवल निःस्वार्थ (अल्ट्रूइस्टिक) सरोगेसी को मान्यता प्राप्त है।

  2. फर्टिलिटी जांच और आईवीएफ (IVF) प्रक्रिया: एग्रीमेंट के बाद, इच्छुक माता-पिता और सरोगेट मदर की स्वास्थ्य जांच होती है। यदि अंडाणु या शुक्राणु की गुणवत्ता में समस्या हो तो एग डोनर या स्पर्म डोनर की मदद ली जाती है। इसके बाद आईवीएफ प्रक्रिया के तहत प्रयोगशाला में अंडाणु और शुक्राणु मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है। उच्च गुणवत्ता वाले भ्रूण को चुना जाता है ताकि सफलता दर अधिक हो।

  3. एंब्रियो ट्रांसफर (Embryo Transfer): भ्रूण तैयार होने के बाद उसे सरोगेट मदर के गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है। यह प्रक्रिया दर्दरहित होती है और कुछ ही मिनटों में पूरी हो जाती है। भ्रूण के सफलतापूर्वक स्थापित होने के लिए सरोगेट को हार्मोनल दवाइयाँ दी जाती हैं।

  4. गर्भावस्था और प्रसव: गर्भधारण के बाद सरोगेट मदर की नियमित स्वास्थ्य जांच की जाती है। पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक देखभाल का विशेष ध्यान रखा जाता है। इच्छुक माता-पिता भी सरोगेट के साथ इस यात्रा में जुड़े रहते हैं ताकि भावनात्मक बंधन बना रहे। प्रसव के बाद, बच्चे को इच्छुक माता-पिता को सौंप दिया जाता है, जो कानूनी तौर पर उसके अभिभावक होते हैं।

सरोगेसी के प्रकार: जरूरतों के अनुसार रास्ते

सरोगेसी की प्रक्रिया अलग-अलग परिस्थितियों और जरूरतों के हिसाब से विभिन्न प्रकारों में विभाजित होती है:

  1. पारंपरिक सरोगेसी : इस प्रकार में सरोगेट मदर अपने अंडाणु का उपयोग करती है, जिससे वह बच्चे की जैविक मां होती है। इस प्रक्रिया में शुक्राणु को सरोगेट के गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है। हालांकि, भावनात्मक और कानूनी जटिलताओं के कारण भारत में इसे अवैध घोषित किया गया है।

  2. गर्भकालीन सरोगेसी : इसमें सरोगेट मदर का बच्चे से कोई जैविक संबंध नहीं होता। इच्छुक माता-पिता या डोनर के अंडाणु और शुक्राणु से आईवीएफ के माध्यम से भ्रूण तैयार किया जाता है और सरोगेट के गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है। भारत में यही प्रक्रिया कानूनी है और सबसे सुरक्षित मानी जाती है।

  3. अल्ट्रूइस्टिक सरोगेसी : इस प्रकार में सरोगेट मदर को केवल चिकित्सा और अन्य आवश्यक खर्चों की प्रतिपूर्ति की जाती है। इसमें किसी भी प्रकार का आर्थिक लाभ नहीं दिया जाता, जिससे महिलाओं के शोषण से बचा जा सके। भारत में केवल इसी प्रकार की सरोगेसी को मान्यता दी गई है।

  4. कमर्शियल सरोगेसी : इसमें सरोगेट मदर को गर्भधारण के लिए मोटी रकम दी जाती थी। आर्थिक लालच और शोषण की घटनाओं के कारण भारत सरकार ने 2015 में इसे अवैध कर दिया।

अस्पताल और डॉक्टर का चयन

सरोगेसी की सफलता में अनुभवी डॉक्टर और सही अस्पताल की भूमिका अहम होती है। मल्टी-स्पेशलिटी अस्पताल या फर्टिलिटी क्लिनिक का चयन करते समय अस्पताल की सफलता दर, डॉक्टर का अनुभव और उपलब्ध सुविधाओं का ध्यान रखना जरूरी होता है। बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध हैं।

लागत और अन्य खर्चे

सरोगेसी की लागत कई घटकों पर निर्भर करती है:

  • एग डोनर फीस: ₹50,000 - ₹2,00,000

  • स्पर्म डोनर फीस: ₹10,000 - ₹50,000

  • आईवीएफ प्रक्रिया: ₹1,00,000 - ₹2,50,000

  • चिकित्सा और पोषण खर्च: सरोगेट मदर की देखभाल के लिए अतिरिक्त खर्च लागू होता है।

निष्कर्ष:

सरोगेसी ममता पाने का एक वैकल्पिक लेकिन संवेदनशील रास्ता है। सही जानकारी, उचित कानूनी प्रक्रिया और विशेषज्ञों के मार्गदर्शन से यह सफर सुरक्षित और सफल बनाया जा सकता है। सरोगेसी सिर्फ एक मेडिकल प्रक्रिया नहीं, बल्कि कई जिंदगियों को जोड़ने वाली एक भावनात्मक यात्रा है।

Dr. Sunita Singh Rathore

Dr. Sunita Singh Rathore

Dr. Sunita Singh Rathore is a highly experienced fertility specialist with over 15 years of expertise in assisted reproductive techniques. She has helped numerous couples achieve their dream of parenthood with a compassionate and patient-centric approach.